Sunday, 2 February 2014

HINDI ME COMPUTER KI JANKARI

आज के समय सम्पूर्ण संसार मे शायद ही कोई ऐसा इन्सान बचा होगा जो किसी न किसी रूप से कंप्यूटर या उससे होने वाले कामो से न जुड़ा हो. आज कंप्यूटर ने साक्षरता का परिभाषा ही बदल कर रख दिया है. आज के समय जो कंप्यूटर नहीं जानता उससे निरक्षर कहा जाता हैं.
हम्रारे देश मे लगभग आधी से ज्यादा आबादी हिंदी, लिख बोल और समझ सकती हैं. परन्तु अधिकांश लोगो के मन मे कंप्यूटर को लेके एक धारणा बनी हुई है की कंप्यूटर केवल वही लोग इस्तेमाल कर सकते है जो इंग्लिश जानते है. उनकी यह धारणा पूर्णता गलत भी नहीं है. अगर बस ४-५ वर्ष पहले की बात करे तो उस समय कंप्यूटर पर इंग्लिश का ही बोल-बाला था. हिंदी के उपयोग के लिए अलग से फॉण्ट डाउनलोड करना पड़ता था. इसके वाबजूद भी केवल हिंदी लिखा जा सकता था हिंदी मे कंप्यूटर को निर्देश नहीं दिया जा सकता था. परन्तु आज यह बातें एक मिथ्या बन कर रह गयी हैं. अब हम कंप्यूटर को पूर्णताः हिंदी मे इस्तेमाल कर सकते है. जरूरत हैं तो सिर्फ एक सही मार्गदर्शन की.
हमारे इस ब्लॉग का उद्देश्य उन लोगो तक कंप्यूटर शिक्षा को पहुँचाना है जिन्हें इंग्लिश समझने मे समस्या होती हैं ताकि वो भी तकनीकों का पूरा फ़ायदा उठा पाए. हमने इस ब्लॉग को कंप्यूटर के शुरुवाती अध्याय से प्रारम्भ किया है. आशा है यह ब्लॉग आपको सम्पुर्ण सहयोग प्रदान करेगा.

1 कम्पयूटर से परिचय

सम्पूर्ण विश्व मे शायद ही कोई इंसान बचा होगा जो इस शब्द से अभी तक अनजान होगा.
कम्प्यूटर एक इलैक्ट्रोनिक डिवाइस है । जो इनपुट के माध्यम से आंकडो को ग्रहण करता है उन्हे प्रोसेस करता है एवं सूचनाओ को निर्धारित स्थान पर स्टोर करता है ! कम्पयूटर एक क्रमादेश्य मशीन है । कम्पयूटर की निम्नलिखित विशेषताएँ है ।
1)कम्पयूटर विशिष्ठ निर्देशो को सुपरिभाषित ढंग से प्रतिवाधित करता है ।
2)यह पहले संचित निर्देशो को क्रियान्वित करता है ।
वर्तमान के कम्पयूटर इलेक्ट्रानिक और डिजिटल है । इनमे मुख्य रूप से तार ट्रांजिस्टर एवं सर्किट का उपयोग किया जाता है । जिसे हार्डवेयर कहा जाता है । निर्देश एवं डेटा को साफ्टवेयर कहा जाता है । कम्प्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देश्य तथा रूप-आकार के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते हैं। वस्तुतः इनका सीधे-सीधे अर्थात प्रत्यक्षतः (Direct) वर्गीकरण करना कठिन है, इसलिए इन्हें हम निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत करते हैं :
1. अनुप्रयोग (Application )
2. उद्देश्य (Purpose )
3. आकार (Size)
1. अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार 
.यद्यपि कम्प्यूटर के अनेक अनुप्रयोग हैं जिनमे से तीन अनुप्रयोगों के आधार पर कम्प्यूटरों के तीन प्रकार होते हैं :
(a) एनालॉग कम्प्यूटर
(b ) डिजिटल कम्प्यूटर
(c) हाईब्रिड कम्प्यूटर

2. उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार
कम्प्यूटर को दो उद्देश्यों के लिए हम स्थापित कर सकते हैं- सामान्य और विशिष्ट , इस प्रकार कम्प्यूटर उद्देश्य के आधार पर निम्न दो प्रकार के होते हैं :
(a ) सामान्य-उद्देशीय कम्प्यूटर
(b ) विशिष्ट -उद्देशीय कम्प्यूटर 
3. आकार के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार
आकार के आधार पर हम कम्प्यूटरों को निम्न श्रेणियाँ प्रदान कर सकते हैं –
1. माइक्रो कम्प्यूटर
2. वर्कस्टेशन
3. मिनी कम्प्यूटर
4. मेनफ्रेम कम्प्यूटर
5. सुपर कम्प्यूटर

2. कंप्यूटर और उसका महत्व


आज के समाज मे जो कंप्यूटर नहीं जानता उससे मुर्ख कहा जाता हैं . आजकल कंप्यूटर बहुत महत्वपूर्ण हो गया है , क्योंकि यह बहुत ही सटीक ज्यादा तेज है, और कई कार्य को आसानी से हासिल कर सकता हैं. आज की दुनिया में कंप्यूटर बहुत उपयोगी हैं हम अनगिनत काम कंप्यूटर के द्वारा कर सकते हैं. मौसम फॉर्कस्टिंग और कई अन्य मुस्किल चीजों भी आसानी से हो जाती हैं. आज दुनिया का कोई भी इंसान नहीं बचा हैं जो किसी ना किसी रूप से कंप्यूटर से ना जुड़ा हुआ हो.

3 पर्सनल कम्प्यूटर

पर्सनल कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर समानार्थक से जाने वाले वैसे कम्प्यूटर प्रणाली है जो विशेष रूप से व्यक्तिगत अथवा छोटे समूह के द्वारा प्रयोग मे लाए जाते हैं। इन कम्प्यूटरों को बनाने में माइक्रोप्रोसेसर मुख्य रूप से सहायक होते है । पर्सनल कम्प्यूटर निर्माण विशेष क्षेत्र तथा कार्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। उदाहरणार्थ- घरेलू कम्प्यूटर तथा कार्यालय में प्रयोगकिये जाने वाले कम्प्यूटर। बजारमें, छोटे स्तर की कम्पनियों अपने कार्यालयों के कार्य के लिए पर्सनल कम्प्यूटर को प्राथमिकता देते हैं।
पर्सनल कम्प्यूटर के मुख्य कार्यो में क्रीड़ा-खेलना, इन्टरनेट का प्रयोग , शब्द-प्रक्रिया इत्यादि शामिल हैं। पर्सनल कम्प्यूटर के कुछ व्यवसायिक कार्य निम्नलिखित हैं-
1. कम्प्यूटर सहायक रूपरेखा तथा निर्माण
2. इन्वेन्ट्री तथा प्रोडक्शन कन्ट्रोल
3. स्प्रेडशीट कार्य
4. अकाउन्टिंग
5. सॉफ्टवेयर निर्माण
6. वेबसाइट डिजाइनिंग तथा निर्माण
7. सांख्यिकी गणना
पर्सनल कम्प्यूटर का मुख्य भाग
माइक्रोप्रोसेसर वह चीप होती जीस पर कंट्रोल यूनिट और ए. एल. यू. एक परिपथ होता है। माइक्रोप्रोसेसर चिप तथा अन्य डिवाइस एक इकाई में लगे रहते है, जिसे सिस्टम यूनिट कहते है। पी,सी. में एक सिस्टम यूनिट, एक मनिटर या स्क्रीन एक की बोर्ड एक माउस और अन्य आवश्यक डिवाइसेज, जैसे प्रिंटर, मॉडेम, स्पीकर, स्कैनर, प्लॉटर , ग्राफिक टेबलेट , लाइच पेन आदि होते हैं।
पर्सनल कम्प्यूटर का मूल सिद्धान्त 
पी.सी एक प्रणाली है जिसमें डाटा और निर्देशों को इनपुट डिवाइस के माध्यम से स्वीकार किया जाता है। इस इनपुट किये गये डाटा व निर्देशों को आगे सिस्टम यूनिट में पहुँचाया जाता है, जहाँ निर्देशों के अनुसार सी. पी. यू. डाटा पर क्रिया या प्रोसेसिंग का कार्य करता है और परिचय को आउटपुट यूनिट मॉनीटर या स्क्रीन पर भेज देता है। यह प्राप्त परिणाम आउटपुट कहलाता है। पी. सी में इनपुट यूनिट में प्रायः की-बोर्ड और माउस काम आते है जबकि आउटपुट यूनिट के रूप में मॉनिटर और प्रिटर काम आते हैं।

4 कम्प्यूटर की पीढ़ी

कम्प्यूटर यथार्थ मे एक आश्चर्यजनक मशीन है। कम्प्यूटर को विभिन्न पीढ़ी मे वर्गीकृत किया गया है। समय अवधि के अनुसार कम्प्यूटर का वर्गीकरण नीचे दिया गया है।
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर ( 1945 से 1956)
द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1956 से 1963)
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1964 से 1971)
चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर(1971 से वर्तमान)
पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटर (वर्तमान से वर्तमान के उपरांत) 
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर ( 1945 से 1956)
सन् 1946 मे पेनिसलवेनिया विश्वविधालय के दो ईंजिनियर जिनका नाम प्रोफेसर इक्रर्टऔर जॉन था। उन्होने प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर का निर्माण किया। जिसमे उन्होने वैक्यूम ट्यूब का उपयोग किया था। उन्होने अपने नए खोज का नाम इनिक(ENIAC) रखा था। इस कम्प्यूटर मे लगभग 18,000 वैक्यूम ट्यूब , 70,000 रजिस्टर और लगभग पांच मिलियन जोड़ थे । यह कम्प्यूटर एक बहुत भारी मशीन के समान था । जिसे चलाने के लिए लगभग 160 किलो वाट विद्युत उर्जा की आवशयकता होती थी।
द्वितीय पीढी के कम्प्यूटर ( 1956 से 1963 ) 
सन् 1948 मे ट्रांजिस्टर की खोज ने कम्प्यूटर के विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । अब वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया जिसका उपयोग रेडियो ,टेलिविजन , कम्प्यूटर आदि बनाने मे किया जाने लगा । जिसका परिणाम यह हुआ कि मशीनो का आकार छोटा हो गया । कम्प्यूटर के निर्माण मे ट्रांजिस्टर के उपयोग से कम्प्यूटर अधिक उर्जा दक्ष ,तीव्र एवं अधिक विश्वसनिय हो गया । इस पीढी के कम्प्यूटर महंगे थे । द्वितीय पीढी के कम्प्यूटर मे मशीन लेंग्वेज़ को एसेम्बली लेंग्वेज़ के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया । एसेम्बली लेंग्वेज़ मे कठिन बायनरी कोड की जगह संक्षिप्त प्रोग्रामिंग कोड लिखे जाते थे ।
तृतिय पीढी के कम्प्यूटर (1964 से 1975) 
यद्यपि वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया था परंतु इसके उपयोग से बहुत अधिक मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती थी जो कि कम्प्यूटर के आंतरिक अंगो के लिए हानिकारक थी । सन् 1958 मे जैक किलबे ने IC(integrated cercuit ) का निर्माण किया । जिससे कि वैज्ञानिको ने कम्प्यूटर के अधिक से अधिक घटको को एक एकल चिप पर समाहित किया गया , जिसे सेमीकंडकटर कहा गया, पर समाहित कर दिया । जिसका परिणम यह हुआ कि कम्प्यूटर अधिक तेज एवं छोटा हो गया ।
चतुर्थ पीढी के कम्प्यूटर 
सन् 1971 मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया । LSI (large scale integrated circuit ) VLSI(very large scale integratd circuit ) ULSI(ultra large scale integrated circuit ) मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया । सन् 1975 मे प्रथम माइक्रो कम्प्यूटर Altair 8000 प्रस्तुत किया गया ।
सन् 1981 मे IBM ने पर्सनल कम्प्यूटर प्रस्तुत किया जिसका उपयोग घर, कार्यालय एवं विघालय मे होता है । चतुर्थ पीढी के कम्प्यूटर मे लेपटॉप का निर्माण किया गया । जो कि आकार मे ब्रिफकेस के समान था । plamtop का निर्माण किया गया जिसे जेब मे रखा जा सकता था
पंचम पीढी के कम्प्यूटर (वर्तमान से वर्तमान के बाद)
पंचम पीढी के कम्प्यूटर को परिभाषित करना कुछ कठिन होगा । इस पीढी के कम्प्यूटर लेखक सी क्लार्क के द्वारा लिखे उपन्यास अ स्पेस ओडिसी मे वर्णित HAL 9000 के समान ही है । ये रियल लाइफ कम्प्यूटर होंगे जिसमे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस होगा । आधुनिक टेक्नॉलाजी एवं विज्ञान का उपयोग करके इसका निर्माण किया जाएगा जिसमे एक एकल सी. पी. यू . की जगह समानान्तर प्रोसेसिंग होगी । तथा इसमे सेमीकंडकटर टेक्नॉलाजी का उपयोग किया जाएगा जिसमे बिना किसी प्रतिरोध के विद्युत का बहाव होगा जिससे सूचना के बहाव की गति बढेगी ।

 5 कम्प्यूटर अपना काम कैसे करता है ?

1.इनपुट के साधन जैसे की-बोर्ड, माउस, स्कैनर आदि के द्वारा हम अपने निर्देश,प्रोग्राम तथा इनपुट डाटा प्रोसेसर को भेजते हैं ।
2.प्रोसेसर हमारे निर्देश तथा प्रोग्राम का पालन करके कार्य सम्पन्न करता है ।
3.भविष्य के प्रयोग के लिए सूचनाओं को संग्रह के माध्यमों जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी डिस्क आदि पर एकत्र किया जा सकता है ।
4.प्रोग्राम का पालन हो जाने पर आउटपुट को स्क्रीन, प्रिंटर आदि साधनों पर भेज दिया जाता है ।

सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट – सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को हिन्दी में केन्द्रीय विश्लेषक इकाई भी कहा जाता है । इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह कम्प्यूटर का वह भाग है, जहां पर कम्प्यूटर प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है ।  सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सी.पी.यू.) को पुनः तीन भागों में बांटा जा सकता है
1. कन्ट्रोल यूनिट
2. ए.एल.यू.
3. स्मृति

कन्ट्रोल यूनिट 
कन्ट्रोल यूनिट का कार्य कम्प्यूटर की इनपुट एवं आउटपुट युक्तियों को नियन्त्रण में रखना है । कन्ट्रोल यूनिट के मुख्य कार्य है –
1. सर्वप्रथम इनपुट युक्तियों की सहायता से सूचना/डेटा को कन्ट्रोलर तक लाना ।
2. कन्ट्रोलर द्वारा सूचना/डेटा को स्मृति में उचित स्थान प्रदान करना ।
3. स्मृति से सूचना/डेटा को पुनः कन्ट्रोलर में लाना एवं इन्हें ए.एल.यू. में भेजना ।
4. ए.एल.यू.से प्राप्त परिणामों को आउटपुट युक्तियों पर भेजना एवं स्मृति में उचित स्थान प्रदान करना ।
ए.एल.यू.
कम्प्यूटर की वह इकाई जहां सभी प्रकार की गणनाएं की जा सकती है, अर्थमेटिक एण्ड लॉजिकल यूनिट कहलाती है ।
स्मृति 
किसी भी निर्देश, सूचना अथवा परिणाम को संचित करके रखना ही स्मृति कहलाता है । कम्प्यूटर के सी.पी.यू. में होने वाली समस्त क्रियायें सर्वप्रथम स्मृति में जाती है । तकनीकी रूप में मेमोरी कम्प्यूटर का कार्यकारी संग्रह है । मेमोरी कम्प्यूटर का अत्यधिक महत्वपूर्ण भाग है जहां डाटा, सूचना और प्रोग्राम प्रक्रिया के दौरान स्थित रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तत्काल उपलब्ध होते हैं ।
इनपुट युक्ति
आमतौर पर की-बोर्ड एवं माउस है । इनपुट युक्ति एक नली के समान है जिसके द्वारा आँकडे एवं निर्देश कम्प्यूटर में प्रवेश करते है ।
आउटपुट युक्ति
मुख्य रूप से स्क्रीन एवं प्रिंटर इसका उदाहरण है । इसके अलावा वे सभी युक्ति जो आपको बताए की कम्प्यूटर ने क्या संपादित किया है आउटपुट युक्ति कहलाती है ।
संचित युक्ति
यह कम्प्यूटर मे स्थायी तौर पर बहुत अधिक मात्रा मे आंकडो को संचित करने की अनुमती प्रदान करता है । उदाहरण डिस्क ड्राइव, टेप ड्राइव ।

6  कम्प्यूटर की विशेषताएँ

प्रत्येक कम्प्यूटर की कुछ सामान्य विशेषताएँ होती है । कम्प्यूटर केवल जोड करने वाली मशीन नही है यह कई जटिल कार्य करने मे सक्षम है।कम्प्यूटर की निम्न निशेषताएँ है। 
वर्ड-लेन्थ
डिजिटल कम्प्यूटर केवल बायनरी डिजिट पर चलता है। यह केवल 0 एवं 1 की भाषा समझता है। आठ बिट के समूह को बाइट कहा जाता है । बिट की संख्या जिन्हे कम्प्यूटर एक समय मे क्रियान्वित करता है वर्ड लेंन्थ कहा जाता है । सामान्यतया उपयोग मे आने वाले वर्ड लेन्थ 8,16,32,64 आदि है। वर्ड लेन्थ के द्वारा कम्प्यूटर की शक्ति मापी जाती है।
तीव्रता
कम्प्यूटर बहुत तेज गति से गणनाएँ करता है माइक्रो कम्प्यूटर मिलियन गणना प्रति सेकंड क्रियांवित करता है। 

संचित युक्ति
कम्प्यूटर की अपनी मुख्य तथा सहायक मेमोरी होती है। जो कि कम्प्यूटर को आंकडो को संचित करने मे सहायता करती है । कम्प्यूटर के द्वारा सुचनाओ को कुछ ही सेकंड मे प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रकार आकडो को संचित करना एवं बिना किसी त्रुटि के सुचनाओ को प्रदान करना कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण विशेषता है 
शुद्धता
कम्प्यूटर बहुत ही शुद्ध मशीन है । यह जटिल से जटिल गणनाएँ बिना किसी त्रुटि के करता है ।
वैविघ्यपूर्ण
कम्प्यूटर एक वैविघ्यपूर्ण मशीन है यह सामान्य गणनाओ से लेकर जटिल से जटिल गणनाएँ करने मे सक्षम है । मिसाइल एवं उपग्रहो का संचालन इन्ही के द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दो मे हम कह सकते है कि कम्प्यूटर लगभग सभी कार्यो को कर सकता है एक कम्प्यूटर दूसरे कम्प्यूटर से सुचना का आदान प्रदान कर सकता है । कम्प्यूटर की आपस मे वार्तालाप करने की क्षमता ने आज ईंटरनेट को जन्म दिया है ।जो कि विश्व का सबसे बडा नेटवर्क है ।
स्वचलन
कम्प्यूटर एक समय मे एक से अधिक कार्य करने मे सक्षम है ।
परिश्रमशीलता
परिश्रमशीलता का अर्थ है कि बिना किसी रूकावट के कार्य करना । मानव जीवन थकान ,कमजोरी,सकेन्द्रण का आभाव आदि से पिडित रङता है।मनुष्य मे भावनाए ङोती है वे कभी खुश कभी दुखी होते है । इसलिए वे एक जैसा काम नही कर पाते है । परंतु कम्प्यूटर के साथ ऐसा नही है वह हर कार्य हर बार बहुत ही शुद्धता एवं यथार्थता से करता है 

7 मूल इकाईयॉं

कंप्यूटर की मूल इकाइयों का मतलब कंप्यूटर की उन बातों से है जिनसे कंप्यूटर की गणनाओं का काम प्रारंभ होता है.
बिट 
बिट अर्थात Binary digT, कम्प्यूटर की स्मृति की सबसे छोटी इकाई है । यह स्मृति में एक बायनरी अंक 0 अथवा 1 को संचित किया जाना प्रदर्शित करता है । यह बाइनरी डिजिट का छोटा रूप है. यहाँ एक सवाल उठता हैं की बिट ० और १ ही क्यू होता है ३-४ क्यू नहीं ? तो इसका जवाब दो तरह से आता हैं,
- चूकी गणितीय गणना के लिये विज्ञानियों को ऐसा अंक चाहीये था जो किसी भी तरह के गणना को आगे बढ़ाने या घटाने पर गणितीय उतर पर असर न डाले तो केवल ० एक मात्र एसी संख्या हैं जिसे किसी भी अंक के साथ जोड़ने या घटाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता और १ एक मात्र ऐसी संख्या हैं जिसे किसी अंक के साथ गुणा या भाग देने पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
-दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिकस में हम जानते हैं की ० और १ क्रमशः ऑन और ऑफ को दिखलाता हैं. कंप्यूटर भी इलेक्ट्रॉनि सिग्नल को ही पहचानता हैं इस कारण ० और १ का उपयोग किया जाता हैं.

बाइट 
यह कम्प्यूटर की स्मृति (memory) की मानक इकाई है । कम्प्यूटर की स्मृति में की-बोर्ड से दबाया गया प्रत्येक अक्षर, अंक अथवा विशेष चिह्न ASCII Code में संचित होते हैं । प्रत्येक ASCII Code 8 byte का होता है । इस प्रकार किसी भी अक्षर को स्मृति में संचित करने के लिए 8 बिट मिलकर 1 बाइट बनती है ।
कैरेक्टर 
संख्यांको के अलावा वह संकेत है जो भाषा और अर्थ बताने के काम आते है । उदाहरण के लिए हम देखे
a b c d e f g h i j k l m n o p q r s t u v w x y z A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 ! @ # $ % ^ & * ( ) _ – = + | \ ` , . / ; ‘ [ ] { } : ” < > ?
कम्प्यूटर सिस्टम सामान्यतः कैरेक्टर को संचित करने के लिए ASCII कोड का उपयोग करते हैं । प्रत्येक कैरेक्टर 8 बिटस का उपयोग करके संचित होता है ।

8. आस्की (ASCII) कोड क्या होता है

American Standard Code For Information Interchange
आज हम कंप्यूटर पर आसनी जो कुछ भी लिखते हैं वो आस्की में ही लिखा होता है. प्रत्येक कंप्यूटर प्रयोगकर्ता अंकों, अक्षरों तथा संकेतों के लिए बाइनरी सिस्टम पर आधारित कोड का निर्माण करके कंप्यूटर को परिचालित कर सकता है! लेकिन उसके कोड केवल उसी के द्वारा प्रोग्रामों और आदेशों के लिए लागू होंगे! इससे कंप्यूटर के प्रयोगकर्ता परस्पर सूचनाओं का आदान प्रदान तब तक नहीं कर सकते जब तक कि वे एक -दूसरे द्वारा इस्तेमाल किये हुए कोड संकेतों से परिचित न हों! सूचनाओं के आदान प्रदान की सुविधा के लिए अमेरिका मे एक मानक कोड तैयार किया गया है जिसे अब पूर विश्व मे मान्यता प्राप्त है! इसे आस्की (ASCII) के नाम से जाना जाता है! इसमे प्रत्येक अंक, अक्षरों वा संकेत को 8 बीटो से दर्शाया गया है! इन 8स्थानों पर केवल 0 और 1 की संख्या ही लिखी गयी है!

9. हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर

अव्यावहारिक तौर पर अगर कंप्यूटर को परिभाषित किया जाये तो हम हार्डवेयर को मनुष्य का शरीर और सॉफ्टवेर को उसकी आत्मा कह सकते हैं. हार्डवेयर कंप्यूटर के हिस्सों को कहते हैं, जिन्हें हम अपनी आँखों से देख सकते हैं, छू सकते हैं अथवा औजारों से उनपर कार्य कर सकते हैं! ये वास्तविक पदार्थ है! इसके विपरीत सॉफ्टवेयर कोई पदार्थ नहीं है! ये वे सूचनाएं, आदेश अथवा तरीके हैं जिनके आधार पर कंप्यूटर का हार्डवेयर कार्य करता है! कंप्यूटर हार्डवेयर सॉफ्टवेयर से परिचित होते हैं अथवा सॉफ्टवेयर कंप्यूटर के हार्वेयर से परिचित एवं उनपर आधारित होते हैं!





हार्डवेयर का निर्माण कारखानों में होता है, जबकि सॉफ्टवेयर कंप्यूटर ज्ञाता के मस्तिष्क की सोच द्वारा बनाएं जाते हैं, जिनके आधार पर कल -कारखाने हार्डवेयर को उत्पादित करते हैं! सामन्य भाषा में कहा जाए तो सॉफ्टवेयर कंप्यूटर द्वारा स्वीकृत विनिर्देश होते हैं जिनके माध्यम से कंप्यूटर कार्य करते हैं! कंप्यूटर हार्डवेयरों के निर्माण में उच्च टेक्नोलोजी का इस्तेमाल किया जता है! इनका निर्माण कल -कारखानों में ही मशीनों व उपकरणों की सहायता से होता है! सॉफ्टवेयर कंप्यूटर सिद्धांतो के आधार पर हार्डवेयर के लिए आवश्यक निर्देश होते हैं, इन्हें तैयार करने के लिए किसी कारखाने की आवश्यकता नहीं होती! कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर के मूल सिद्धांतो एवं कार्य प्रणाली से परिचित हो अपने मस्तिष्क के उपयोग से सॉफ्टवेयर तैयार कर सकता है

10. विभिन्न अंक प्रणाली


द्वि-अंकीय प्रणाली 
यह कंप्यूटर की सबसे महत्वपूर्ण प्रणाली हैं जिसके द्वारा ही हम कंप्यूटर से बात करते है. इस प्रणाली के अन्तर्गत आंकड़ों को मुख्य रूप से केवल दो अंकों के संयोजन द्वारा दर्शाया जाता है । ये दो अंक उपरोक्त ‘0’ तथा ‘1’ होते हैं परन्तु इस प्रणाली को द्वि-अंकीय या द्वि-आधारी पद्धति का नाम इसलिये दिया गया है क्योंकि इसमें विभिन्न आंकड़ों के कूट संकेत उस दी गई संख्या को दो से लगातार
विभाजन के पश्चात प्राप्त परिणामों एवं शेषफल के आधार पर किया जाता है एवं इस कूट संकेत से पुनः दशमलव अंक प्राप्त करने पर इस कूट संकेत के अंकों को उसके स्थानीय मूल्य के बराबर 2 की घात निकालकर गुणा करते हैं एवं इनका योग फल निकाल कर ज्ञात किया जाता है । इस प्रणाली में बने हुए एक शब्द में प्रत्येक अक्षर को एक बिट कहा जाता है ।
011001 यह एक 6 बिट की संख्या है ।
11010010 यह एक 8 बिट की संख्या है ।

ऑक्टल (8 के आधार वाली) प्रणाली 
इस प्रणाली में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न अंकों का आधार 8 होता है इन्ही कारणों से इस प्रणाली को ओक्टल प्रणाली के नाम से जाना जाता है । दूसरे शब्दों में इस प्रणाली में केवल 8 चिन्ह या अंक ही उपयोग किये जाते हैं – 0,1,2,3,4,5,6,7 (इसमें दशमलव प्रणाली की भांति 8 एवं 9 के अंकों का प्रयोग नहीं किया जाता) यहाँ सबसे बड़ा अंक 7 होता है (जो कि आधार से एक कम है) एवं एक ऑक्टल संख्या में प्रत्येक स्थिति 8 के आधार पर एक घात को प्रदर्शित करती हैं । यह घात ऑक्टल संख्या की स्थिति के अनुसार होती है । चूँकि इस प्रणाली में कुल “0” से लेकर “7” तक की संख्याओं को अर्थात 8 अंकों को प्रदर्शित करना होता है ।कम्प्यूटर को प्रषित करते समय इस ऑक्टल प्रणाली के शब्दों को बाइनरी समतुल्य कूट संकेतों में परिवर्तित कर लिया जाता है । जिससे कि कम्प्यूटर को संगणना हेतु द्वि-अंकीय आंकड़े मिलते हैं एवं समंक निरूपण इस ऑक्टल प्रणाली में किया जाता है जिससे कि समंक निरुपण क्रिया सरल एवं छोटी हो जाती है ।

हैक्सा (16 के आधार वाली) दशमलव प्रणाली 
चुकी सामान्य गिनती ० से ९ तक की ही होती है इस कारन उससे ऊपर की गणना के लिए हैक्सा दशमलव प्रणाली का उपयोग किया जाता है.  हैक्सा दशमलव प्रणाली 16 के आधार वाली प्रणाली होती है . 16 आधार हमें यह बताता है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत हम 16 विभिन्न अंक या अक्षर इस प्रणाली के अंतर्गत उपयोग कर सकते हैं । इन 16 अक्षरों में 10 अक्षर तो दशमलव प्रणाली के अंक 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 होते हैं एवं शेष 6 अंक A,B,C,D,E,F के द्वारा दर्शाये जाते हैं । जो कि दशमलव मूल्यों 10,11,12,13,14,15 को प्रदर्शित करते हैं । चूँकि हैक्सा दशमलव प्रणाली के अंतर्गत कुल 16 अंक प्रदर्शित करने होते हैं, इस प्रणाली के विभिन्न अक्षरों को द्वि-अंकीय प्रणाली के समतुल्य बनाने हेतु कुल 4 बिटों का प्रयोग किया जाता है ।

11. मैमोरी युक्तियॉ (Memory Device)


प्राथमिक संग्रहण 
यह वह युक्तियाँ होती हैं जिसमें डेटा व प्रोग्राम्स तत्काल प्राप्त एवं संग्रह किए जाते हैं ।
1.रीड-राइट मेमोरी,रैम(RAM) 
Random access memory – कंप्यूटर की यह सबसे महवपूर्ण मेमोरी होती है. इस मेमोरी में प्रयोगकर्ता अपने प्रोग्राम को कुछ देर के लिए स्टोर कर सकते हैं । साधारण भाषा में इस मेमोरी को RAM कहते हैं । यही कम्प्यूटर की बेसिक मेमोरी भी कहलाती है । यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –
डायनेमिक रैम (DRAM)
डायनेमिक का अर्थ है गतिशील । इस RAM पर यदि 10 आंकड़े संचित कर दिए जाएं और फिर उनमें से बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं, तो उसके बाद वाले बचे सभी आंकड़े बीच के रिक्त स्थान में स्वतः चले जाते हैं और बीच के रिक्त  स्थान का उपयोग हो जाता है ।
स्टैटिक रैम (SRAM)
स्टैटिक रैम में संचित किए गए आंकड़े स्थित रहते हैं । इस RAM में बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं तो इस खाली स्थान पर आगे वाले आंकड़े खिसक कर नहीं आएंगे । फलस्वरूप यह स्थान तब तक प्रयोग नहीं किया जा सकता जब तक कि पूरी मेमोरी को “वाश” करके नए सिरे से काम शुरू न किया जाए ।
2.रीड ओनली मेमोरी (Read Only Memory)
आधुनिक कंप्यूटर की महत्वपूर्ण मेमोरी ROM  उसे कहते हैं, जिसमें लिखे हुए प्रोग्राम के आउटपुट को केवल पढ़ा जा सकता है, परन्तु उसमें अपना प्रोग्राम संचित नहीं किया जा सकता । बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम ( BIOS) नाम का एक प्रोग्राम ROM का उदाहरण है, जो कम्प्यूटर के ऑन होने पर उसकी सभी इनपुट आउटपुट युक्तियों की जांच करने एवं नियंत्रित करने का काम करता है ।
प्रोग्रामेबिल रॉम (PROM)
इस स्मृति में किसी प्रोग्राम को केवल एक बार संचित किया जा सकता है, परंतु न तो उसे मिटाया जा सकता है और न ही उसे संशोधित किया जा सकता है ।

इरेजेबिल प्रॉम (EPROM)
इस I.C. में संचित किया गया प्रोग्राम पराबैंगनी किरणों के माध्यम से मिटाया ही जा सकता है । फलस्वरुप यह I.C. दोबारा प्रयोग की जा सकती है ।इलेक्ट्रिकली-इ-प्रॉम (EEPROM)
इलेक्ट्रिकली इरेजेबिल प्रॉम पर स्टोर किये गये प्रोग्राम को मिटाने अथवा संशोधित करने के लिए किसी अन्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती । कमाण्ड्स दिये जाने पर कम्प्यूटर में उपलब्ध इलैक्ट्रिक सिगल्स ही इस प्रोग्राम को संशोधित कर देते हैं । 


12. सॉफ्टवेयर के प्रकार

सॉफ्टवेयर दो प्रकार के होते हैं ।
1)सिस्टम सॉफ्टवेयर
“सिस्टम सॉफ्टवेयर” यह एक ऐसा प्रोग्राम होता है , जिनका काम सिस्टम अर्थात कम्प्यूटर को चलाना तथा उसे काम करने लायक बनाए रखना है । सिस्टम सॉफ्टवेयर ही हार्डवेयर में जान डालता है । ऑपरेटिंग सिस्टम, कम्पाइलर आदि सिस्टम सॉफ्यवेयर के मुख्य भाग हैं ।
 
2)एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर
‘एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर’ ऐसे प्रोग्रामों को कहा जाता है, जो हमारे कंप्यूटर पर आधारित मुख्य  कामों को करने के लिए लिखे जाते हैं । आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न उपयोगों के लिए भिन्न-भिन्न सॉफ्टवेयर होते हैं । वेतन की गणना, लेन-देन का हिसाब, वस्तुओं का स्टाक रखना, बिक्री का हिसाब लगाना आदि कामों के लिए लिखे गए प्रोग्राम ही एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर कहे जाते  हैं ।






13. कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर

कम्पाइलर
कम्पाइलर किसी कम्प्यूटर के सिस्टम साफ्टवेयर का भाग होता है । कम्पाइलर एक ऐसा  प्रोग्राम है, जो किसी उच्चस्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम का अनुवाद किसी कम्प्यूटर की मशीनी भाषा में कर देता है । निम्न चित्र में इस कार्य को दिखाया गया है ।
उच्चस्तरीय भाषा प्रोग्राम –> कम्पाइलर –> मशीनी भाषा प्रोग्राम
हर प्रोग्रामिंग भाषा के लिए अलग-अलग कम्पाइलर होता है पहले वह हमारे प्रोग्राम के हर कथन या आदेश की जांच करता है कि वह उस प्रोग्रामिंग भाषा के व्याकरण के अनुसार सही है या नहीं ।यदि प्रोग्राम में व्याकरण की कोई गलती नहीं होती, तो कम्पाइलर के काम का दूसरा भाग शुरू होता है ।यदि कोई गलती पाई जाती है, तो वह बता देता है कि किस कथन में क्या गलती है । यदि प्रोग्राम में कोई बड़ी गलती पाई जाती है, तो कम्पाइलर वहीं रूक जाता है । तब हम प्रोग्राम की गलतियाँ ठीक करके उसे फिर से कम्पाइलर को देते हैं ।
इन्टरप्रिटर 
इन्टरपेटर भी कम्पाइलर की भांति कार्य करता है । अन्तर यह है कि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक साथ मशीनी भाषा में बदल देता है और इन्टरपेटर प्रोग्राम की एक-एक लाइन को मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है । प्रोग्राम लिखने से पहले ही इन्टरपेटर को स्मृति में लोड कर दिया जाता है । 
कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर में अन्तर
इन्टरपेटर उच्च स्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन के कम्प्यूटर में प्रविष्ट होते ही उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित कर लेता है, जबकि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम के प्रविष्ट होने के पश्चात उसे मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है

14 सिंगल यूजर और मल्टीयूजर

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में कम्प्यूटर पर एक समय में एक आदमी काम सकता है । सिंगल यूजर  ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्यतः पर्सनल कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते हैं, जिनका घरों व छोटे कार्यालयों में उपयोग होता है । डॉस, विंडोज इसी के उदाहरण है । मल्टीयूजर प्रकार के सिस्टमों में एक समय में बहुत सारे व्यक्ति काम कर सकते हैं और एक ही समय पर अलग-अलग विभिन्न कामों को किया जा सकता है । जाहिर है, इससे कम्प्यूटर के विभिन्न संसाधनों का एक साथ प्रयोग किया जा सकता है । यूनिक्स इसी प्रकार का ऑपरेटिंग 
मल्टी प्रोसेसिंग और मल्टी टास्किंग
मल्टी प्रोसेसिंग
एक समय मे एक से अधिक कार्य को संपादित करने  के लिए सिस्टम पर एक से अधिक सी.पी.यू रहते है । इस तकनीक को मल्टी प्रोसेसिंग कहते है । मल्टी प्रोसेसिंग सिस्टम का निर्माण मल्टी प्रोसेसर सिस्टम को ध्यान मे रखते हुए किया गया है । 
एक से अधिक प्रोसेसर उपल्ब्ध होने के कारण इनपुट आउटपुट एवं प्रोसेसींगतीनो कार्यो के मध्य समन्वय रहता है । एक ही तरह के एक से अधिक सी.पी. यू का उपयोग करने वाले सिस्टम को सिमिट्रिक मल्टी प्रोसेसर सिस्टम कहा जाता है ।
 
मल्टी टास्किंग 
मेमोरी मे रखे एक से अधिक प्रक्रियाओ मे परस्पर नियंत्रण मल्टी टास्किंग कहलाता है . किसी प्रोग्राम से नियत्रण हटाने से पहले उसकी पूर्व दशा सुरक्षित कर ली जाती है जब नियंत्रण इस प्रोग्राम पर आता है प्रोग्राम अपनी पूर्व अवस्था मे रहता है । मल्टी टास्किंग मे यूजर को ऐसा प्रतित होता है कि सभी कार्य एक साथ चल रहे है 
सिस्टमहै
















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